डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत के सर्वश्रेष्ठ समाज सुधारकों, विधिवेत्ताओं और संविधान निर्माताओं में से एक थे। उनका पूरा जीवन सामाजिक न्याय, समानता, शिक्षा और मानवाधिकारों के लिए समर्पित रहा। उन्होंने दलितों, महिलाओं, पिछड़े वर्गों, श्रमिकों और समाज के कमजोर वर्गों को सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए अनगिनत प्रयास किए।
संविधान निर्माण में योगदान
- भारत के संविधान के मुख्य शिल्पकार।
- समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व के सिद्धांतों का समावेश।
- अस्पृश्यता समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 17 लागू किया।
- कमजोर वर्गों की सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान जोड़े।
महिलाओं के अधिकार
- महिलाओं के लिए हिंदू कोड बिल का प्रारूप तैयार किया।
- संपत्ति अधिकार, तलाक अधिकार और समान अवसर की पहल।
- शिक्षा और रोजगार में महिलाओं को बढ़ावा दिया।
शिक्षा पर जोर
डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को सामाजिक बदलाव की सबसे बड़ी शक्ति बताया और प्रसिद्ध मंत्र दिया – "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।"
आरक्षण प्रणाली
SC, ST और OBC वर्गों के लिए शिक्षा और नौकरी में आरक्षण व्यवस्था — कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास।
धर्म परिवर्तन और बौद्ध आंदोलन
1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और त्रिशरण व पंचशील के माध्यम से समानता का संदेश फैलाया।
अन्य योगदान
- श्रमिक कल्याण: काम के घंटे घटाने, न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा की पहल।
- आरबीआई और आर्थिक नीतियों पर प्रभाव: भारत की वित्तीय संस्थाओं को मजबूती प्रदान की।
- सामाजिक संगठन: मूकनायक अखबार, बहिष्कृत हितकारिणी सभा आदि की स्थापना।
साहित्यिक योगदान
प्रमुख रचनाएँ: "बुद्ध और उनका धम्म", "जाति का विनाश" (Annihilation of Caste), "States and Minorities", "The Problem of the Rupee"।
निष्कर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्ष, समानता और सामाजिक न्याय का प्रतीक है। उनके विचार आज भी एक बेहतर, समान और सशक्त भारत की प्रेरणा देते हैं।
जाति प्रथा और अस्पृश्यता के खिलाफ संघर्ष